हिसार: हिसार के राजगढ़ रोड स्थित सेंट्रल जेल-2 के बंदियों को अब खेती और कृषि के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस पहल का उद्देश्य बंदियों को कृषि कार्य के बारे में जानकारी देकर उन्हें रोजगार के नए अवसर प्रदान करना है। गंगवा स्थित स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान और पंजाब नेशनल बैंक इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के साझेदार हैं, जो बंदियों को खेती के गुर सिखाएंगे।
कार्यक्रम का शुभारंभ और जेल प्रशासन की भूमिका
स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक प्रदीप और उनकी टीम ने सोमवार को जेल का दौरा किया और जेल अधीक्षक से बंदियों को प्रशिक्षण देने के बारे में चर्चा की। इसके बाद, मंगलवार से बंदियों को कृषि की ट्रेनिंग देने का कार्य शुरू कर दिया गया। जेल प्रशासन का मानना है कि यह कदम बंदियों के जीवन में एक सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत बंदियों को 13 दिन की विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। इस दौरान उन्हें यह सिखाया जाएगा कि किस फसल को कितने एकड़ में उगाने से अच्छी पैदावार हो सकती है और किन-किन फसलों की खेती की जा सकती है।
कृषि से आत्मनिर्भर बनने का अवसर
यह ट्रेनिंग बंदियों को खेती के बारे में बेसिक ज्ञान से लेकर उन्नत खेती तक के विषयों पर केंद्रित होगी। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें यह भी बताया जाएगा कि वे किस प्रकार से खेती शुरू करने के लिए जमीन को लीज पर ले सकते हैं। इसके साथ ही यह जानकारी भी दी जाएगी कि किस फसल में कितना खर्च आएगा और कौन सी फसल ज्यादा मुनाफा दे सकती है।
इस ट्रेनिंग के बाद, बंदियों को यह भी प्रेरित किया जाएगा कि वे जेल से बाहर आने के बाद खेती कर अपना जीवन यापन कर सकते हैं। जेल प्रशासन का मुख्य उद्देश्य बंदियों को मेहनत और ईमानदारी से काम करने की प्रेरणा देना है, ताकि वे सजा समाप्त होने के बाद समाज में एक अच्छे नागरिक के रूप में वापस लौट सकें।
30 बंदियों को मिलेगा प्रशिक्षण
इस कार्यक्रम के तहत 30 बंदियों को खेती की ट्रेनिंग दी जाएगी। ट्रेनिंग का आयोजन सेंट्रल जेल-2 के ट्रेनिंग सेंटर में किया जाएगा। इस ट्रेनिंग के दौरान बंदियों को प्रतिदिन दो से तीन घंटे तक कृषि के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी दी जाएगी। प्रशिक्षक इन बंदियों को कृषि के विभिन्न पहलुओं पर, जैसे फसलों की खेती, मवेशी पालन, और उन्नत कृषि तकनीकों के बारे में बताएंगे।
जेल अधिकारियों का समर्थन
जेल अधीक्षक रमेश और अन्य जेल अधिकारी इस कार्यक्रम का समर्थन कर रहे हैं और मानते हैं कि यह ट्रेनिंग बंदियों के जीवन को बदलने में मदद करेगी। रमेश ने कहा, “इस प्रकार के प्रशिक्षण से बंदियों को सजा समाप्त होने के बाद एक नया रास्ता मिलेगा। वे अपनी मेहनत और समर्पण से कृषि कार्य में सफल हो सकते हैं।”
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आत्मनिर्भरता की दिशा में एक कदम
यह पहल केवल बंदियों के लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है। जेल प्रशासन और साझीदार संस्थाओं का उद्देश्य बंदियों को कृषि के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना है। खेती एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें छोटे निवेश के साथ अच्छे लाभ की संभावना होती है, खासकर जब सही जानकारी और मार्गदर्शन हो। इस प्रशिक्षण के बाद बंदी कृषि कार्य में अपनी रुचि और हुनर को आगे बढ़ा सकते हैं और अपनी छवि को सुधार सकते हैं।
सकारात्मक बदलाव की ओर एक पहल
इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम बंदियों के जीवन में न सिर्फ सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हैं, बल्कि यह उन्हें समाज में अपनी पुरानी पहचान से बाहर निकाल कर नए तरीके से जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं। खेती की ट्रेनिंग से बंदी न केवल अपने जीवन को संवार सकते हैं, बल्कि वे अपने परिवार और समाज के लिए भी एक उदाहरण बन सकते हैं।
इस पहल से यह उम्मीद जताई जा रही है कि बंदी कृषि के जरिए आत्मनिर्भर बनकर अपने जीवन में नई दिशा पा सकते हैं। इसे जेल प्रशासन की ओर से एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो बंदियों को समाज में पुनः समावेशित करने की दिशा में एक कदम और बढ़ाता है।